रंगों के त्योहार की ढेर सारी शुभकामनाएँ!
हर साल होली आती है। रंगों से दुनिया रंगी जाती है। हम सब जाने कितनी बातें करते हैं कि रंग ये कहते हैं, रंग वो कहते हैं... रंगों के ये मायने होते हैं वगैरह, वगैरह। लेकिन क्या रंगों का कहा सचमुच सुना जाता है? जो सुना जाता, तो गलत क्यों समझा जाता?
जब दुनिया बनाने वाले की कूची चली होगी, तो उसने कुछ सोचकर ही धूप पीली बनाई होगी। और हमने क्यों उदासी को खुश्क कह दिया? धूप की गर्माहट और रोशनी की अहमियत को हमने कहाँ जाना?
उजाला सफेद होता है और हमने सफेद को बेरंग मान लिया।
काला क्या सिर्फ अँधेरा होता है? काजल, बादल, मिट्टी का सौंदर्य अँधेरे से जोड़ा जा सकता है??
पानी को तो हमने रंगहीन ही कह दिया। लेकिन पानी से ज्यादा रंग किसमेँ दिख सकते हैं? नदियों की आरती के दिए, सबसे ज्यादा पानी में ही लुभावने लगते हैं। यहाँ तो पूरा शहर तालाब के पानी में झलकता है। और असल से कहीं ज्यादा खूबसूरत उसकी यह पनीली छाया लगती है।
शाम के साए, उतरते पीले रंग की मिसाल कहे जाते हैं, जैसे ढलती उम्र लेकिन सबसे अच्छा आसमान सूरज को विदा करने के लिए ही सजता है।
उम्मीद के जितने रंग हो सकते हैं, सब मिले हैं हमें। हर रंग में ही तो उम्मीद छुपी है। जो कोरा है, वो रंगे जाने को तैयार है।
जो रंगा है, वो खुशरंगी की मिसाल है।
इस होली पर आपकी खुशरंगों में आस्था बने, उम्मीद के रंगों पर आपका विश्वास बढ़े, इसी दुआ के साथ,
मेरे दोस्त आपको होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ:-)
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